मेरी आँखों में तेरी...
मेरी तस्वीर में रंग किसी और का तो नहीं
घेर लें मुझ को सब आँखें मैं तमाशा तो नहीं
ज़िन्दगी तुझ से हर एक सांस में समझोता करूँ
शौक जीने का है मुझको पर इतना तो नहीं
चेहरा देखूं तो क़द-ओ-काल बदल जाते हैं
छुप के आईने के पीछे कोई बेठा तो नहीं
किस की मिटटी को नचाते हैं हवाओं के भवर
कोई आवारा वेह्शत है बगुला तो नहीं
रूह को दर्द मिला दर्द को आँखें न मिलीं
तुझ को महसूस किया है तुझ को देखा तो नहीं
मेरी आँखों में तेरे नक्श-ओ-क़दम रहते हैं
इस सराय में मुसाफिर कोई ठहरा तो नहीं
सोचते सोचते दिल डूबने लगता है
ज़हन की तह में कोई दरिया तो नहीं
और कान जगजीत साहब की आवाज़ तलाश कर रहे हैं ……
ReplyDelete…… जाने क्यों गुज़रे हुए कल में पहुँची हुई सी महसूस कर रही हूँ
-बहुत शुक्रिया !
इस पोस्ट के लिये
Thanks lori
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